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तुम क्या गए सितारा जैसे मेरे भीतर
टूट गया
बाढ़ बहा ले चली किनारा जैसे मुझसे
छूट गया
शोख रात पर्वत पर बैठी लिये चाँदनी
आँचल मे
दोनों हाथ उठाए उसने चाँद गिरा और
फ़ूट गया
तुम बिन क्या रातें क्या खुशबू मौसम मुझसे
रूठ गया
बड़े बड़े जो वादे तुमने किये न पूरे
हो पाए
सच की तख्ती लटका करके साथ तुम्हारे
छूट गया
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