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मां
तब वो थी,आज मैं हूं 
वो भी मां थी, मैं भी हूं
वक्त और जमाने से परे
बस एक एहसास हूं
अपने बच्चों की चाहत
उनका विश्वास हूं
जब से होश संभाला
उसे पूरे दिन दौड़ते देखा
कभी बाबूजी की फरमाइशें
कभी दादा-दादी की जिम्मेदारियां
कभी बच्चों की हठ
उसे भाग-भागकर पूरी करते देखा
मां के जाने के बाद
अब वो घर विराना सा लगता
मायके जाने का मन तो करता
पर दिल नहीं करता
आज जब मैं मां हूं कोशिश करती 
परछाई बनने की
अपनी जिम्मेदारियों के साथ
मां की तरह जीने की
जब कदम थकते हैं
उसको याद करती हूं
फिर जोश से भर दिल ही दिल में
धन्यवाद कहती हूं
वक्त और जमाना मां को
बांट कहां सका कभी
कल की मां,आज की मां
ये बात व्यर्थ ही रही
मां के पहनावे से ममत्व
कैसे नाप सकते हो
वो चाहे साड़ी में, जीन्स में या फ्राक में ही क्यों ना हो
मां 'मां' थी,मां है और मां ही रहेगी
सारे रिश्ते बदल जाए पर मां नहीं बदलेगी

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