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अफसाने जो दिन के सिले थे
और जो कहानियां बुनी थी रातों में
हक़ीक़त से कोसों दूर था
बस डुब कर रहा तेरी आंखों की गहराइयों मे
वो रातें जो कटी, दिन जो जगे
तु ,तेरे कहानियां, तेरे अफसाने
मेरी हसरतें , ख़्वाबों के चार दिवारी में कैद थी
मिलने आती रहा करो बेवजह बे-वक्त ।
इतना अमिर नहीं कि तेरा वक्त खरीद सकू ।
और जो कहानियां बुनी थी रातों में
हक़ीक़त से कोसों दूर था
बस डुब कर रहा तेरी आंखों की गहराइयों मे
वो रातें जो कटी, दिन जो जगे
तु ,तेरे कहानियां, तेरे अफसाने
मेरी हसरतें , ख़्वाबों के चार दिवारी में कैद थी
मिलने आती रहा करो बेवजह बे-वक्त ।
इतना अमिर नहीं कि तेरा वक्त खरीद सकू ।
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