
Share0 Bookmarks 109 Reads0 Likes
इक दिन मैं भी सिंक जाऊंगा
इस बैगन की तरह चूल्हे पे,
फिर कोई ठंडा पानी डालेगा
और उठता भाप फिर से मुझे झुल्साएगा।
चमड़ी भी तब आसानी से उधड़ेगी;
मेरा भर्ता फिर सब खाएँगे
कुछ चटखारे लेंगे,
कुछ को तब भी स्वाद न आएगा।
दीवाली की अगली सुबह
वो खंगाल रहा है फूटे पटाखे,
शायद कोई अधमरा मिल जाए
तो फिर से उसे सुलगाएगा।
कोई नहीं है इस कमरे में
बस मैं और मेरा यक़ीं;
अधूरी ज़िन्दगी के कुछ अ
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments