बेजान शाख's image
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वो मासूम सी मन की, 
चुलबुली सी लड़की! 
दिखती नहीं हैं अब
नज़र लगी है शायद किसी की! 

देखा था जिसे पंछी सी चहकते हुए, 
ख़्वाबों के आसमां में उड़ते हुए , 
कुछ बेरंग सा दिखता हैं अब चेहरा
ना जाने क्यूँ लगाए है पहरा!! 

 हाँ देखा था एक दिन उसे
आँसुओ में सिसकते हुए , 
बिखरते दिल के टुकड़ो को समेटते हुए
मुस्कां को दर्द में बदलते हुए। 

नाजुक से दिल से खेला हैं किसी ने , 
बेफिक्र सी उस शाख को तोड़ा हैं किसी ने , 
आसान हैं इश्क़ ,कौन कहता हैं, 
गर हैं तो रंग इसका लाल कहा होता ! 

कई रातें सूजी आँखो में सोई हुई, 
वो मस्तमोला सी लड़की! 
बेजान हैं अब..... . 
उस शाख की हर पत्ती!! 

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