
शून्य!
एक रोज़ ऐसे ही मूसलाधार बारिश होगी
हम अपने अहम् को यमुना के मैले पानी में धो देंगे
हम फिर मिलेंगे ।
ट्राफलगर स्क्वायर में
जलियांवाला बाग़ में, बैशाखी पे
होली पे , गांव, पूर्णमासी के मेले में
ईद पे , फ़िनलैंड के क्रिसमस में
ऑस्ट्रिया में किसी यहूदी के घर
बर्लिन की दीवार गिराते हुए
रूस की क्रांति में
आज़ाद हिन्द फौज में
रोम के म्यूजियम में
नील नदी के किनारे
बनारस के अस्सी घाट पर
मंगोलिया के वीराने में
तिब्बत के स्तूपों में
हम फिर मिलेंगे।
ट्रैन के थर्ड क्लास कम्पार्टमेंट में
न्यू यॉर्क से छपे अख़बार पर मूँगफली खाते
बंगाल में धान बोते
आखिर महीने महुआ पे झूमते जगदलपुर के जंगलों में
और फिर पहली तारीख पेरिस के किसी बार में।
बसंत के रंग में
जेठ में दादी के किस्से
अखार मेघ ताकते
और सिगरेट सुलगाते पूस की रात में।
ख्याल, ठुमरी , ध्रुपद में
साहिर, शैलेन्द्र, गुलज़ार के गीतों में
अरस्तु , प्लेटो , बुद्ध के दर्शन में
कीट्स, ब्लैक और अल्फ्रेड नोएस के पोएट्री में
रस्किन बांड के बच्चों में
किरोस्तामी, रे या मेरे ही किसी सिनेमा में।
एक दिन पुत्र , पति और पिता के बंधन से मुक्त होकर
मैं आऊंगा उस अनंत दुनिया में तुम्हे खोजने
शून्य से सब शुरू करेंगे
हम फिर मिलेंगे।
- सुजीत झा
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