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निकलते हैं एक अनजान सफ़र को,
काम की तालाश में।
छोड़ कर घर परिवार अपना,
साथ लेकर बस मजबूती अपनी
और साहस (धूप-प्यास) से लड़ने की।
और कंपकंपाती ठंड भी धैर्य रख कर काम करने की ,
और शाम तक डटे रहने की।
जाते हैं एक द्वंद लेकर वहां
कि होगा कैसा जगह-पानी
और कैसे होंगे लोग वहां के।
और पहुंच जाते हैं जब
द्वंद टूट जाता है उनका
अच्छा तो अच्छा, वरना वही क़िस्मत का रोना
हमेशा की तरह।
(क्यों आयें यहां.. काश कि कहीं और चले गए होते)।
काम की तालाश में।
छोड़ कर घर परिवार अपना,
साथ लेकर बस मजबूती अपनी
और साहस (धूप-प्यास) से लड़ने की।
और कंपकंपाती ठंड भी धैर्य रख कर काम करने की ,
और शाम तक डटे रहने की।
जाते हैं एक द्वंद लेकर वहां
कि होगा कैसा जगह-पानी
और कैसे होंगे लोग वहां के।
और पहुंच जाते हैं जब
द्वंद टूट जाता है उनका
अच्छा तो अच्छा, वरना वही क़िस्मत का रोना
हमेशा की तरह।
(क्यों आयें यहां.. काश कि कहीं और चले गए होते)।
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