
इश्क वो जो था दरिया सा अपना,
उस दरिया से निकल जाना जरूरी था क्या?
निकलना था तो हमको निकालते ;
सुकून से मुझे बिखरता हुआ देख पाते!
पता नही था मुझे,
कि अफसोस अब कोई फिर तुमको ना होगा;
कभी तुम खुद से कुछ गलत ना करते,
बोलता नही क्या कुछ दिल ये तुम्हारा;
बता देते गर तो हम शिकवा भी ना करते!
नासमझ भी इतनी ये मोहब्बत नही थी;
प्यार से तुम्हारे कभी कोई शिकायत ही नही थी!
कहो आज तुम भी कि थी गलती तुम्हारी,
अंधेरी रातों में खुशबू तुम्हारी चाहना;
चांद के उजालें में तुम्हारे लिए तरसना,
ये आंसू,हंसी,गुस्सा हमारा;
सब कुछ अपना था तुम्हारे नाम जो करना!
था गलत सब तो है सही क्या बताओ?
हर एक चेहरे में नया चांद ढूंढना,
सिमटी जो किरणे मुस्कुराहटों को भूलना;
किए थे जो वादे उन वादों को तोड़ना!
बताओ तुम ही थी क्या खता हमारी?
क्या इतना जरूरी था मुझे भूल जाना?
©️सुहानी राय
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