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अपने मन की करता हूं
अब भी पहले जैसा हूं
उलझा हूं ख़ुद से जितना
उतना ख़ुद को समझा हूं
और सुनाओ कैसे हो!
मैं तो बिलकुल बढ़िया हूं
मुझसे इतना डरते हो!
मैं तो इक आईना हूं
कितना सीधा बनते हो!
संग तुम्हारे बिगड़ा हूं
जितनी सीधी है दुनिया
मैं भी उतना सीधा हूं
चल जाऊं तो क्या कहने
वरना खोटा सिक्का हूं
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