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यादों का पतझड़
अश्क़ों को गले से उतारा है आज
तेरी यादों का पतझड़ जो आया है,
रो लेता तो मन कुछ हल्का होता
सिसकियों ने दर्द और बढ़ाया है
-सुधीर बडोला
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यादों का पतझड़
अश्क़ों को गले से उतारा है आज
तेरी यादों का पतझड़ जो आया है,
रो लेता तो मन कुछ हल्का होता
सिसकियों ने दर्द और बढ़ाया है
-सुधीर बडोला
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