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वो कुएँ का मेंढक
विचारों में नहीं ज़ोर है
बस टर्र टर्र का शोर है
हौसलों से कमज़ोर है
वो कुएँ का मेंढक
मन में पाली एक भ्रांति है
घर अपने जब शांति है
सोचे क्यूँ लानी फिर क्रांति है
वो कुएँ का मेंढक
खोखली परंपराओं को पकड़े है
जीर्ण धारणाओं में जकड़े है
बेमतलब फिर भी अकड़े है
वो कुएँ का मेंढक
कुएँ में उसका साम्राज्य चलता
क्यूँ फिर वो बाहर निकलता
भय खोने का जिसके मन में पलता
वो कुएँ का मेंढक
-सुधीर बडोला
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