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स्त्री और परंपरा
वो स्त्री थी
उसने वेदनाएँ सही
जीर्ण धारणाओं में जकड़ी रही
स्त्री धर्म समझ
प्रथाओं को निभाती रही
अपने अंतर्मन को मारकर
स्वयं झुलसती रही
कई वर्ष बीते
अब इन जंजीरों को
वो परंपरा समझने लगी
फिर वो सास बनी
और नव विवाहित बहू से
संकल्प लेने लगी
रूढ़िवादी परंपराओं को
सम्मान सहित
आगे ले जाने के लिये
-सुधीर बडोला
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