
सचिन…सचिन….!!!
बल्ला अपनी बाजुओं में दबाये, होती निगाहें तेरी आसमान पर
माथे हेलमेट दमके तिरंगा, उतरे जब भी तू मैदान पर ।
‘सचिन-सचिन’ की कर्तल ध्वनि से जब जब गूँजता आकाश है
विकट से विकट परिस्थिति में भी तय शत्रु का विनाश है ।
धैर्य साहस का प्रतीक तू, घमण्ड तुझसे कोसों दूर है
करे जब वज्र सा प्रहार बल्ला हर दुश्मन चकनाचूर है ।
रंगत में जब हो खेल तेरा बल्ले से रनों की गंगा बहती है
मानो दुश्मन के ख़ेमे में हार भी दस्तक देती है ।
शत्रु के शब्द रूपी बाणों ने जब भी संयम को तेरे टटोला है
ज़ुबाँ तेरी अक्सर ख़ामोश रही ,हर बार बल्ला तेरा बोला है ।
लेग-ग्लान्स की परिभाषा ,तुम स्ट्रेट-ड्राइव की किताब हो
‘गॉड ओफ़ क्रिकेट’ कहलाते ,मास्टर-ब्लास्टर का ख़िताब हो ।
शालीनता की मूरत है तू ,संयम तेरा शस्त्र है
अपने कर्तव्य पथ अविचल तू , बल्ला ही तेरा अस्त्र है ।
टाइमिंग इतनी स्वीट तेरी मानो हर शॉट में संगीत है
निरंतर खेलते देखना तुझे अपने आप में एक ट्रीट है ।
है मुंबई का गौरव तू , देश का अभिमान है
खेल जगत में ‘भारत –रत्न’ ने बनाई अलग अपनी पहचान है ।
दर्शक बीच तिरंगे में रंगकर आये, कई ‘सुधीर’ जैसे तेरे फ़ैन है
अक्सर अपनी छवि तुझमें देखें, स्वयं ‘सर डॉन ब्रेडमेन है ।
धूल चटाई हर प्रतिद्वंदी को ,बल्लेबाज़ तू बेख़ौफ़ था
हुए मुरली- क़ादिर मुरीद तेरे ,वॉर्न को सपनों में भी तेरा ख़ौफ़ था ।
वकार-अक्रम को किया नतमस्तक ,शोएब का घमण्ड चूर किया
डॉनल्ड-शकलीन की लय बिगाड़ी ,स्टेन -मैग्राथ को मजबूर किया ।
लारा-पोंटिंग को छोड़ पीछे ,हर कीर्तिमान अपने नाम किया
शतकों का भी शतक लगाकर अदभुत-अद्वितीय काम किया ।
देश – विदेश की हर धरती पर, रनों का तूने अम्बार लगाया
सिडनी - केपटाउन या हो चेन्नई, तेरी प्रतिभा का परचम लहराया ।
मैदान पर्थ हो या मैंचेस्टर,क्या ख़ूब तू लड़ा था
शारजाह के तूफ़ान में भी, ‘अंगद के पाँव’ सा खड़ा था ।
हो शतक के क़रीब जब तुम ,दुआओं में सिर झुक जाते है
धड़कनें थम जाती सबकी ,अक्सर दफ़्तरों में काम रुक जाते है ।
आउट होना तेरा खलता ऐसे , मिज़ाज तंग हो जाता है
मायूसी का आलम ना पूछों ,घर का टीवी बंद हो जाता है ।
जीतने की उम्मीद जीवित, क्रीज पर
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