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प्रिये-॥


मैं ठहरा अनुगत नर स्वामी

तुम भार्या हुक्मरान प्रिये,

क्षण भर में प्रकट होता मैं

सुन तेरा फ़रमान प्रिये ।


मैं ठहरा कंठ काग का

तुम कोयल की तान प्रिये,

मधुर वाणी से जब तुम पुकारती

क्यूँ हो जाता मैं हैरान प्रिये ।


तुम महलों की उड़ती तितली 

मैं लघ

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