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मुस्कान

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महकी हवा तो कभी दर्द की दवा

जादू की छड़ी सी ये ‘मुस्कान’ है

परिजनों के चेहरे पर हो तो

मिट जाती थकान है

ग्राहक के मुख पर आये तो

चल पड़ती दुकान है

प्रेमिका के अधरों से छूटे तो

चढ़ती मुहब्बत परवान है

अपनी शकल पर ओढ़े तो

हर तरफ़ मिलता सम्मान है


-सुधीर बडोला

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