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अनिश्चित
टूटी हुई उम्मीदों का बोझ लिए
अहसहनीय परिस्थितियों में
जब ज़िंदगी कफ़न से लिपटना चाहे
मौत,बुलाने से भी नहीं आती है
और फिर..
वक्त लेता सुनहरी करवटें
रिश्ते जुड़ते, लौटती खोयी प्रतिष्ठा
हर तरफ़ ख़ुशियों की अठखेलियाँ
मन में जगती जी भर जीने की उमंग
और तभी….
ज़िंदगी को छकाती हुई
साँसों की बेड़ियाँ तोड़ती
अकस्मात ‘एकाएक’
दबे पाँव चली आती है
मौत…
-सुधीर बडोला
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