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माँ
अश्रुओं में भी छिपी
तेरी निश्छल भावनाएँ हैं
तेरी छड़ी और हर डाँट में
अव्यक्त सभ्यताएँ हैं
गुनगुनाई जो लोरियाँ तूने
मेरी सबसे खूबसूरत कवितायें हैं
अपने इस निरापद आँचल में
तू अनंत खुशियाँ छुपाये है
ईश्वरीय अनुकंपा है तू ‘माँ’
तुझमें असीमित क्षमताएं हैं
-सुधीर बडोला
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