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मैं दीपक की लौ जलाऊँ
तुम माटी के दिये बनाओ
मैं दीपक की लौ जलाऊँ
अनुशय सारे अब बिसरा कर
टूटे रिश्तों को फिर अपनाऊँ ।
घर आँगन को कर रोशन
पटाखों का तुम्हें शोर सुनाऊँ
बाँट खील बताशे और मिष्ठान
मधुर पलों को गले लगाऊँ ।
राह दिखे जो मुरझाए चेहरे
उन कुंठित आँखों को चमकाऊँ No postsSend Gift
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