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                 पिता हूँ मैं


सबसे छुपा ले माथे की शिकन वो भाव हूँ

करे हर उत्तेजना को सहज, वो शीतल जल प्रवाह हूँ |

रोके कुल की तरफ़ आती हर आँधी को वो चट्टान हूँ

सीमित सामर्थ्य फिर भी हर समस्या का समाधान हूँ |

आजीवन तुम्हारे हर सपनों की किस्त चुकाता हूँ

खुद को मिटाकर भी हर फ़र्ज़ निभाता हूँ |

हर बर्ताव पर अक्सर तुम्हें टोकता हूँ

पर इसमें भी कहीं तुम्हारी भलाई ही सोचता हूँ |

हर असमंजस के पलों का आभास हूँ

तुम्हारे डगमगाते कदमों का विश्वास हूँ |

अकारण गतिशीलता में ठहराव हूँ

तुमसे जुड़े हर दायित्व का निर्वाह हूँ |

हर विकट परिस्थिति की पाठशाला हूँ

हार की बेला में भी तुम्हारी जीत की माला हूँ |

ना-उम्मीदी को बदल दे वो यक़ीन हूँ

सच कहूँ तुम्हारे पाँव के नीचे की ज़मीन हूँ |

हरदम तुम्हें सही राह दिखाए वो मशवरा हूँ

निर्मम तपिश में भी साथ दे मित्र मैं खरा हूँ |

संजीदगी की मूरत सिर्फ़ दिखने में सख़्त हूँ

परिवार को जकड़े खड़ा वो छाँव-लुटाता दरख़्त हूँ |

तिनका तिनका जोड़ कर बनाया घोसला हूँ

झुके कंधों को फिर उठा ले वो हौसला हूँ |

हर मुस्किल घड़ी में संपूर्ण कुटुंब को समेटा हूँ

अकेले भीष्म सा बाणों की सेज पे लेटा हूँ |

खोखली भावनाओं से परे सत्य का दर्पण हूँ

जताया नहीं कभी पर त्याग और समर्पण हूँ |

अपनों की ख़ातिर स्वयं के स्वप्नों की जलती चिता हूँ

कठोर सहनशील मगर ज़िम्मेदार एक पिता हूँ |

                                                   

                                         - सुधीर बडोला

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