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दहलीज़
पनपते ग़म के सैलाब को
छुपाने का मौसम है
खींच डाली लक्ष्मण रेखा
मैंने आँसुओं के लिए
कि वो फिर लुढ़क कर
पलकों की दहलीज़ ना लांघे ।
- सुधीर बडोला
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पनपते ग़म के सैलाब को
छुपाने का मौसम है
खींच डाली लक्ष्मण रेखा
मैंने आँसुओं के लिए
कि वो फिर लुढ़क कर
पलकों की दहलीज़ ना लांघे ।
- सुधीर बडोला
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