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अग्रिणी
है सागर का वेग तुझमें
नदियों सी शीतल हो
विशुद्ध विचारों से लिपटी
सामर्थ्य में सबल हो
सदियों से झेली वेदनायें
‘अडिग’पर्वत सी प्रबल हो
बंधनों की खोलती गुत्थियाँ
बेड़ियों को तोड़ने का दमख़म हो
नवजगत की नवचेतना तुम
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