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अग्रिणी
है सागर का वेग तुझमें
नदियों सी शीतल हो
विशुद्ध विचारों से लिपटी
सामर्थ्य में सबल हो
सदियों से झेली वेदनायें
‘अडिग’पर्वत सी प्रबल हो
बंधनों की खोलती गुत्थियाँ
बेड़ियों को तोड़ने का दमख़म हो
नवजगत की नवचेतना तुम
हर कार्य में सक्षम हो
हो मर्दानी झाँसी की रानी
अदभुत शक्ति का परचम हो
मातृत्व का आँचल भी तुम
प्रेम सी निश्छल हो
कर्मठ भी कठोर भी
संगिनी अति निर्मल हो
कभी सीता कभी दुर्गा
‘स्त्री’ हर स्वरूप में तुम उज्जवल हो
-सुधीर बडोला
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