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आज पहली बार किसी शख़्स के दीदार को तरसे हम।
खफा रहते हैं जो मिलने अपने रूठे यार को तरसे हम।।
बहुत दिन से निकला हूं अपने घर से, मंजिल तलाशते।
आज फिर गली, मोहल्ले अपने घर-बार को तरसे हम।।
यूँ बे-असर हुई तुझसे मिलने की हर मुमकिन कोशिशें।
वक़्त ने करवटें ऐसे बदली की तेरे इंतेजार को तरसे हम।।
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