यह इंतजार की घड़ी बितती रही  ।  बितती रही ।'s image
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यह इंतजार की घड़ी बितती रही । बितती रही ।

sudha kushwahasudha kushwaha September 30, 2021
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जिस्म मेरा बंजर सा।

दिल मेरी प्यासी नदी।

यह इंतजार की घड़ी बितती रही । बितती रही ।

नया रूप लेकर।

नए रंग के साथ।

मैं सजी-धजी फिर से लौटी।

बस जिस्म किसी और का था रूह मेरी बस्ती रही।

धीरे धीरे मेरी प्यास और बढ़ती रही।

बस इंतजार मैं तेरा करती रही। करती रही।

तु हर रोज मुझे नकार कर चला जाता पर मैं तुझ से उतना ही प्यार करती रही। करती रही।

तेरे प्यार की एक बूंद भी मिले मुझे यही सोच सोच कर जीती रही।

पर आखिरकार दम तोड़ दिया जिस्म ने तेरी राह देखते देखते।

सुने आकाश को घंटों अकेले बैठकर निहारते निहारते ।

थक गई मैं।

इन सुनीअलमारियों में गहने और कपड़े को उलट पलट ।

मैं सोचती थोड़ी तो आहट होगी।

थक गई मैं।

हर रोज तेरे लिए सजते सजते।

यह सब करते करते।

आम के पेड़ के झूले पर बैठकर मैं कोसों तक उस बहती नदी को देखती रही ।आखिरकार।

जिस्म मेरा रेत सा।

दिल मेरी प्यासी नदी सा। ठहरा रहा।

तुझे एहसास दिलाने के लिए।

तु

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