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वह हमारे इश्क की कदर न कर पाए।
बस हम कदर का इंतजार करते रह गए।
हम कितने बेशर्म थे।
जो हर बार उन्हें तक लौट कर चले आए।
हम उनके काबिल नहीं थे।
मतभेदों का सिलसिला है हमारे दरमियां।
यह जानते हुए भी।
हम उस हवस को इश्क का नाम देकर लौट आए।
कोई शमशन नहीं बची।
जहां हम इस मासूम से दिल को दफना आते।
वह गलियां बावरी हो गई जनाब।
हमारे इश्क का परचम फहराते फहराते।
टूटा है इस कदर जिस्म मेरा।
एक गुरुरी आदमी को समझाते समझाते।
उसको अपनी मोहब्बत का एहसास दिलाते दिलाते।
अब यह इश्क के थामे यह जिस्म नहीं थमेगा।
कोई कब्र ढूंढो ना जनाब मेरे नाम की अब वह यह वही रहेगा।
एक बूंद इश्क की ख्वाहिश नहीं इसे।
यह कहता उस कब्रिस्तान में पड़ा रहेगा।
कह
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