
अभी तक तो सिर्फ मेरा।
टूटा था भरोसा।
रिश्तो की मर्यादा खत्म हुई थी।
लोगों का किया वादा टूटता आया था।
पर इस बार कुछ नया था।
कोई गुमनाम हमसे हुआ गुमशुदा था।
सच सच मानिए उसका नहीं कोई कसूर था।
वह इतना ज्यादा बेकसूर था।
कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं था।
फिर भी यह दिल टूटा था।
कहता भी क्या यह दिल।
गलती हमारी थी।
इस हाथ को पहले हमने ही तो बढ़ाया था।
दिमाग से होकर।
वह कब दिल में उतर गया।
मेरी यादों में पल कर।
हर लम्हा वह मेरा हिस्सा बन गया।
फिर धीरे से।
फिर मेरी धड़कन बनकर धड़क गया।
इस दिल को अपना बनाकर वह।
मोड़ती उन राहों पर तन्हा छोड़ गया।
सच मानिए उसका कसूर नहीं था।
बस उसमें थोड़ा सा बचपना था।
उस ओस की बूंद की तरह।
मुझे तन्हा छोड़ कर।
कुछ पल में ही वह उड़ गए।
लगा कह दूं कि मैंने तुम पर भरोसा किया था।
बदले में सम्मान और प्यार दिया था।
पर मैं यह कैसे कह देती।
मैं कभी एहसान फरामोश नहीं थी।
मेरा टूटा था भरोसा।
सब कुछ टूट गया उसका गम नहीं था।
एक दिल ही तो था मेरे पास जो मेरा था।
पर आज वह दिल भी टूट गया।
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया ।
यह नया तोहफा अपने।
हमें इतनी शिद्दत से दिया।
पर अब हम मुस्कुराने लगे हैं।
उन बहती गलियों में इतराने लगे हैं।
हम इतने कमजोर भी नहीं थे।
यह जमाने को बताने लगे हैं।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments