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अभी तक तो सिर्फ मेरा।
टूटा था भरोसा।
रिश्तो की मर्यादा खत्म हुई थी।
लोगों का किया वादा टूटता आया था।
पर इस बार कुछ नया था।
कोई गुमनाम हमसे हुआ गुमशुदा था।
सच सच मानिए उसका नहीं कोई कसूर था।
वह इतना ज्यादा बेकसूर था।
कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं था।
फिर भी यह दिल टूटा था।
कहता भी क्या यह दिल।
गलती हमारी थी।
इस हाथ को पहले हमने ही तो बढ़ाया था।
दिमाग से होकर।
वह कब दिल में उतर गया।
मेरी यादों में पल कर।
हर लम्हा वह मेरा हिस्सा बन गया।
फिर धीरे से।
फिर मेरी धड़कन बनकर धड़क गया।
इस दिल को अपना बनाकर वह।
मोड़ती उन राहों पर तन्हा छोड़ गया।
सच मानि
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