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उस दिन कुछ तो ऐसा खास था। इन आंखों में।
मेरे तकिए के नीचे रखे मेरे ख्वाबों में।
बदलते मौसम की रातों में।
किताबों की कमेंट्री उड़ गई बातों ही बातों में।
सब कुछ बिखर गया हो जैसे खूबसूरत जज्बातों में।
खिड़कियों से टकराते उन हवाओं में।
बहती नदियों में तैरता था विज्ञापनों का पन्ना।
याद आई मुझे बायो की तमन्ना।
जिसे ना पढ़ने की न ख्वाहिश थी ना तमन्ना।
वह बिना रटा रटाया या पन्ना।
मुझे नहीं थी उसकी तमन्ना।
किस्मत ने जो दिया।
वह मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था।
पर आज इस डूबती कश्ती का सहारा यही।
मेरे सपनों का गुजारा यही।
लिफाफे में कैद।
जंजीरों में
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