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कितने सपने देखे थे मैंने।
चादरों में लिपटे कहीं पड़े रह गए।
आहट तकना हुई मुझे।
सपने टूट कर बिखर गए।
कांटो से चुभने लगी ।
दिन और राते।
सब का कारवां चल पड़ा।
पीछे सिर्फ रह गई हमारी यादें।
कितने सपने देखे थे मैंने।
उन्हें याद कर बरस पड़ी आंखें।
कितने सुंदर थे वह दिन।
जब गर्व से लड़ जाती थी ये आंखें।
कितना मुस्कुराते थे हम।
कितने सपने देखे थे मैंने।
चादरों में लिपटे कहीं पड़े रह गए।।
सुनहरे पन्नों की तरह।
बिस्तरों की गर्माहट में।
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