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लाचार विवश ऐ आंखें।
पर उस रब से कुछ ना मांगे।
विधाता वह अन्नदाता है।
एक सवाल उसके मन में।
पर वह अन्नदाता कहां है ।
उसे कोई विवास आंखें न जाने।
ना पहचाने हैं।
उसे तो पता है।
बस अपने दो वक्त की रोटी का ख्याल।
खबर दो खबर आता जाब अपने नन्हे की याद।
उसके पास नहीं कोई सपनों का चिराग।
पलकों को चूम कर होटों तक उतर जाना ।
इत्तेफाक तो नहीं है तेरा।
उस मां की ममता को चुनौती दे जाना।
फिर पीठ पर बांधकर।
यह बताना कि।
सुन मेरे लाल।
मेरी और तेरी किस्मत इन ईटों की दीवारों की बनी नहीं है।
यह तो कच्चे मकान की होती है जिसे हर वक्त हर तूफान से लड़ना पड़ता है।
आसमानों की तपस में तप कर भी भूख मिटाना पड़ता है।
ना चाह कर भी।
इन चिलचिलाती धूपो में मुस्कुराना पड़ता है।
चाहे कितना भी गम हो ।
उन पसीनो को संभाल कर छि
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