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मर्दों का प्यार।

Sudha KushwahaSudha Kushwaha September 26, 2021
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इश्क इश्क करते फिरते थे तुम।

1 साल भी तुमने इंतजार ना किया।

जिस्मों से जुड़ने की कोशिश की तुमने।

मेरी रूहो तक कहां पहुंचे तुम।

शायद रास्ता बहुत लंबा था।

तुम्हारे और हमारे शहर के बीच गड़ एक छोटा सा खंभा था।

तुमने उस फासले को खत्म होने नहीं दिया।

आपने इंतजार में मुझे जी भर के रोने नहीं दिया।

कहते हो इंतजार था।

रुहो को कब से इंतजार होने लगा।

पत्थरों को जनाब कब से प्यार होने लगा।

इश्क इश्क करते फिरते थे तुम।

कुछ पल के लिए तुम ठहर न सके।

परिस्थिति और हालातों से को सब कुछ मान गए तुम।

होता होगा तुम्हारे लिए इश्क।

मैं ऐसा कोई किस्सा नहीं जानती।

मैं फिजूल का इश्क नहीं मानती।

जाओ जो कहना है कह देना।

मैं तुम्हारी तरह झूठे वादे नहीं करती।

जितनी मेरी दुनिया है मैं उतने में रहती।

मैं तुम्हारी तरह झूठे ख्वाब किसी के पलकों पर न स जाती हूं।

बस फर्क यही हम तुम् में।

कि हम एक दूसरे से बहुत अलग है।

दफन कर देते हैं इस किससे को।

उठने दो चिंगारियां।

हमें किसी की फिक्र नहीं।

तुम जैसे मर्दो पर मुझे भरोसा नहीं।


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