
तुम्हें हम जब जब याद करते होंगे।
तब तब तुम्हें आती होंगी हिचकियां।
जब जब हम तुम्हारी अदा पर मरते होंगे।
तब तब लड़ती होंगी तेरी गाड़ियां।
जब जब हम मुस्कुराते होंगे।
तब तक मुस्कुराती होंगी तेरी डायरिया।
जब-जब इन आंखों में आंसू आते होंगे।
तब तब तेरे इन दराज में रखे उन पन्नों में उठती होंगी चिंगारियां।
जब जब तेरी नजरें मेरी पलकों पर पड़ती होंगी।
तब तब होती होंगी दिवालिया।
मैं हर रोज लगाती हूं परफ्यूम।
की एक दिन मैं तेरे जिस्म से टकराऊंगी। और मैं अपने जिस्म की खुशबू तेरे जिस्म छोड़ जाऊंगी।
यही सोच सोच कर शर्म आती है मेरी साड़ियां।।
जब जब हम तेरे ख्वाबों में जीते होंगे।
तब तब निकल जाती होगी आधी रतिया।
कितने मुश्किलों से नजरे चुरा कर।
फोन की गैलरी में तुझे झांका करती है अखियां।
तुझसे एक बार मिलने की आस में।
तुझे पता नहीं यह की कितनी रातें जगी है अखियां।
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