
इश्क के शहर में तू सबसे अमीर था।
बस मेरा यही एक कसूर था।
के तु इश्क के शहर में सबसे अमीर था।
तेरी आशिकी में यह दिल चूर था।
पर तू करोड़ों की भीड़ में सबसे मगरूर था।
मुझे तुझसे इश्क था।
पर तू तो हजारों की भीड़ में मशहूर था।
करोड़ों चाहने वाले थे तेरे।
लबों पर हंसी थी तेरे।
होठों पर एक गजब की कशिश थी।
मोहब्बत तेरे लिए बस जिस्मों की एक हंसी थी।
दिलों से चाहा तुम्हें बस यही एक कमी थी।
इतनी दूर से चाहा तुझे।
रूहों की मदहोशी में ना रह गई कोई कमी थी।
तेरे जिस्म ने मेरे जिस्म को कभी ना छुआ था।
फिर भी एक एहसास जिंदा दिल के किसी कोने मैं थी।
बस इश्क के शहर में।
बस मेरी एक गलती थी कि मैं सबसे गरीब थी।
तू दिलों के मामले में इतना अमीर था।
उतना ही मशहूर था।
तेरे पास चाहने वालों की तादाद थी।
इश्क के पैगाम में तू बेकसूर था।
कैसे कहूं तू बेवफा है।
तुम मुझसे खफा है।
तुझे तो मेरी चाहत का पता ही नहीं था।
मुझे जैसा तुझे चाहने वाला।
की तेरे इश्क में इतना मजबूर था।
तेरी चाहत को डायरी के पन्नों पर दर्ज किए।
तेरे एहसासों के पल को समेटे हुए।
मोहब्बतों को सीने में दबाकर शोहरतो कि उस भीड़ में हम भी शामिल हुए।
जो कर्ज लिया था तेरी मुस्कान का।
वह सूत समेत लौटा दिए।
आज हम बिना बात के मुस्कुरा दिए।
औकात क्या उस शोहरतो की हमने उसे पैरों तले दबा दिए।
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