काश मौत भी ऐसी आती कि सारा जमाना याद करें।
किसी के आंखों से आंसुओं की बारिश ना होती।
गमों की कोई बरसात ना आती।
मरते वक्त भी मेरे कंधे पर बंदूक और मेरे सर पर टोपी होती।
सीना इतना फौलादी होता।
तिरंगा सरहदों पर गाड़ कर आंखों में एक गजब की चमक होती।
सीने पर मेरे लगी हो गोली चाहे रक्त से रंगीन जमीन होती।
ओ घर में बैठकर स्टेटस लगाने वालों।
तुम्हें क्या पता वह मौत कितनी हसीन होती।
बस मूछों पर एक ताओ होठों पर हंसी होती।
वह जिंदगी भी क्या जिंदगी होती।
काश मौत भी ऐसी आती कि सारा जमाना याद करें।
अपने न रोते कभी हमारी जुदाई में।
जब याद करते सिर्फ हंसते।
दूसरों को हंसाते कुछ कर जाते।
पापा का वह प्यार अम्मा की वह प्यारी लोरी मेरे शाहिद होने पर कौन सुनाएगा।
गर्व होता मेरे उस हसीन मौत पर मेरे अपनों को।
क्या मजाल दुश्मनों की हमारे जिंदा होने पर भी सरहद पार कर सके।
जब तक सांस
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