छोड़कर जो इतरा रहे हो।'s image
Poetry2 min read

छोड़कर जो इतरा रहे हो।

sudha kushwahasudha kushwaha March 28, 2022
Share0 Bookmarks 30829 Reads1 Likes

छोड़कर जो इतरा रहे हो।

होले होले से मोहब्बत के किस्से सुना रहे हो।

जो अपनी अकड़ में मगरूर।

फिर क्यों जलन के मारे दिल को जला रहे हो।

अपने जज्बातों को क्यों दफना रहे हो।

अपनी ही बेवफाई के किस्से सुना रहे हो।

खूब इतरा रहे हो।

अपने ही जख्मों पर मुस्कुरा रहे हो।

टूटी सी चारपाई पर बैठ कर।

आसमानों की तारे अपने पड़ोसी को गिनाआ रहे हो।

छोड़कर जो इतना इतरा रहे हो।

खुद को बर्बाद कर लिया।

तारीफ करनी पड़ेगी तुम्हारी।

फिर भी अकड़ से मुस्कुरा रहे हो।

डर के मारे घबरा रहे हो।

पड़ोसी तक से अप

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts