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अब जान नहीं जिस्म में।

sudha kushwahasudha kushwaha March 21, 2022
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अब जान नहीं जिस्म में।

रुहो ने भी जवाब दे दिया।

कब तक वह तुझ से अपनी बेज्जती कर आएगा।

उसने तुमसे कह दिया।

पर दिल को एक बार फिर तुझ पर भरोसा हुआ।

सब कुछ हार कर भी मुझको।

फिर एक बार धोखा हुआ।

सपनों के रंगीन चादर के पीछे।

तेरे लबों की एक हंसी।

झकझोर गई मुझे।

अब जान नहीं जिस्म में।

रूहों ने जवाब दे दिया।

कब तक तेरे गंदे चेहरे को वह दुनिया से छुपाए गी।

अरे इतना हार गई है अब।

कि अब वह जीतना ना चाहेगी।

घर को तूने।

दारु की दुकान बना दी ।

हर रिश्ता ऐसा कुचला की।

तूने सड़क पर ही श्मशान बना दी।

आसपास से भी कोई अब अपना नहीं गुजरता है।

तेरी गलियों से अब जमाना भी डरता है।

पर मैं क्यों ठहरी हूं ।

यह सवाल उठता है।

मेरे दिल मे

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