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फिजाएं बदल रहीं हैं...
शाम भी शामियाने को ढल रही हैं ।
सर्दियां जो बढ़ रहीं हैं...
रातें भी लंबी हो रहीं हैं ।।
ठहराव के दरमियान बदलाव जो आया, तो समझ आया...
सपनों का नींद से कम नज़रिए से ज़्यादा है वाबस्ता...
यों वक्त हैं मुरीद के मुराद को आजमाता।।
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