लफ्जो के किनारे's image
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लफ्जों के किनारें ... by me

बेनाम खंडहर से मकानों में बसा हैं 
ये कौन हैं जो ऐसे ठिकानों में बसा हैं 

परिंदा बस जाए तो संवर जाए
वो गुलमोहर जो मन के बागानों में बसा हैं 

वो अक्सर कुछ सोच कर रो पड़ता हैं
क्या किस्सा हैं जो वक्त के कानों में बसा हैं 

पलके साथ नहीं देती बातो को तेरी
तू आज भी मेरे बहानो बसा हैं 

वो चरागों से दूर अकेला हंस रहा हैं
कितना दर्द आज उसके पैमानों में बसा हैं 

चीख उठता

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