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जख्म ऐसे मिले कि सिले ही नहीं।
तंज का दौर अब भी टले ही नहीं।
किस ठौर भला ये मर्म कहें।
कहीं सिद्ध मनुज तो मिले ही नहीं।
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जख्म ऐसे मिले कि सिले ही नहीं।
तंज का दौर अब भी टले ही नहीं।
किस ठौर भला ये मर्म कहें।
कहीं सिद्ध मनुज तो मिले ही नहीं।
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