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यूं तो लोग यहां हैं बहुत मगर फिर क्यों लोगों कि कमी सी है?
शायद ये मेरी आंखों के दृष्टि कि कमी ही है।
अगर लोग ये हैं तो फिर इंसानों की कमी क्यों है?
कुछ तो हैं सवाल मन में जो फूट रहे ज्वालामुखियों सी,
अब तो बूझ रहा हूं मैं कि ये तो लोगों की भीड़ बनी सी है।
इन लोगों की भीड़ मे क्यों मेरी आवाज़ दबी सी है?
यूं तो हैं लोग मगर फिर क्यूँ इंसानों की कमी सी है?
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