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मैं ख़फ़ा खुद से ही रहता हूँ, आज कल,
मुस्कुराता नहीं,तख़य्युल में खोया रहता हूँ,
आज कल,
क्यूंकर कोई पूछता नहीं मेरा हाल ए दिल,
मेला ए जहां में, तन्हा रहता हूँ,
आज कल,
था मेरा भी एक चाँद, जो है ख़फ़ा मुझसे,
सोच उसे कमर(आसमान का चाँद)तकता रहता हूँ,
आज कल,
जला के मोहब्बत की आग मेरे सीने में,
जाने कहाँ गया हरजाई,
"तअब" बिन उसके मैं अंदर से खाक होता रहता हूँ,
आज कल
Writer -Sr HashimTa'ab
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