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मन व्यथित है बड़ा कुछ ना कह पा रहा
ना सो पा रहा है ना जग पा रहा
याचना की है इतनी प्रतिक्षा कहाँ
तुम ना आ पा रही ना मैं जा पा रहा ॥
इस अधूरे से मन से हंसेंगे कहाँ
तुम मुझे यह बताओ कि रोये कहाँ
कभी हम जो गिरते तो तुम पास थे
ठोकरें इतनी आयी है जाये कहाँ
जिन्दगी का सफर ना वो अन्तिम हुआ
सांस जाती रही हम मनन में रहे
आस अन्तिम हमारी जो टूटी कभी
अश्रु जाते समय सब नयन में रहे
तुमने जीवन में मेरे है इतना किया
"हम" को छोड़ा अभी और "मैं" कर दिया
इतने छल से है भारी यह जीवन अभी
कल से जीवन ही जीना नया कर दिया
अश्रु पूरित हमारे नयन ठीक हैं
तुम हंसो अपने स्वप्नों की दहलीज पर
फिर आये अगर याद कोई कभी
बाह तुम थाम लेना नये प्रेम की
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" श्रीवास्तव_गौरव "
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