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तुम महाकाल हो काल स्वयं
हर काल तुम्हारे हाथों में
तुम आदियोगी हो योग सदा
बसे तुम्हारे कण कण में
तुम नीलकंठ हो विष
सदा रहे तुम्हारें गर्दन में
तुम चंद्रशेखर हो चंद्र सदा
सजे तुम्हारे मस्तक में
तुम महादेव हो देव सदा
रहे तुम्हारे चरणो में
हे करुणामय! हे शिव शम्भू!
दया करो हे! दयानिधि
ये दास रहे तेरे चरणो मे
ऐसी दो अनुरक्ति प्रभु।
~अर्पित श्रीवास्तव
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