कि शायद's image
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कि शायद उसको मेरा प्यार अब अच्छा नहीं लगता

मैं जो कल तक था उस का यार अब अच्छा नहीं लगता


कशीदे था पढ़ा करता कभी मेरी वफ़ा के जो

मुझे कहता तिरा किरदार अब अच्छा नहीं लगता




अरे जो बे-वजह लड़़ता‌ कि उस को हम मना लेंगे

सुनो करना उसे तकरार अब अच्छा नहीं लगता




कभी हर शे'र पर हम को ख़ुशी से दाद देता था

उसे तो कोई भी अश'आर अब अच्छा नहीं लगता




कभी जो ढूंढता था इक बहाना हम से मिलने का

हमीं से करना आँखें चार अब अच्छा नहीं लगता




उसे मैं जान से भी प्यारा था जब पास थी दौलत

अभी जो हो गया हूं ख़्वार अब अच्छा नहीं लगता




हमेशा वक्त बिगड़ा तो न होगा उस को समझाओ

मैं कह कह कर गया हूं हार अब अच्छा नहीं लगता

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