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हिस्से में कभी मेरे दिलकश ये नज़ारा था
इक मह-जबीं की मेंहदी में नाम हमारा था
जो कहता था महशर में भी साथ न छोड़ेगा
वो छोड़ गया तब जब गर्दिश में सितारा था
अब बरसों मुलाकातें ही उस से नहीं होतीं
जिस शख़्स बिना अपना पल भर न गुज़ारा था
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