Share0 Bookmarks 47543 Reads0 Likes
नादान ही तो है वे पूछते रहे
तो और विकल्प ही किधर है
भुला बैठें वे आस्तिकता को
या नियति का कानून भूलते
यहां रास्ते इंसान नही बनाते
ना कोई भावी को देख पाया
पर्वत से निकल पडे सरिता<
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments