
Share0 Bookmarks 72 Reads0 Likes
नादान ही तो है वे पूछते रहे
तो और विकल्प ही किधर है
भुला बैठें वे आस्तिकता को
या नियति का कानून भूलते
यहां रास्ते इंसान नही बनाते
ना कोई भावी को देख पाया
पर्वत से निकल पडे सरिता
रास्ते तो बहाव तय करता है
देखते गुमराह तो नही हो रहे
कौन रास्ते भटकाने में लगे है
वह तो इतिहास ही झुठलाते
आगे रास्ते समय ने बनाए है
नियति एक रास्ता बन्द करे
और रास्ते खुलते ही जाते है
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments