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वारि वारि वारि ही धरती पर जीवन है
देखे न देखे सब ओर इसका वर्चस्व है
मुलायम रुई सा बरसे पत्थर बन जाए
चट्टान सा खड़ा रहे हिमखंड बन जाए
हिमालय खड़ा या सागर में चट्टान बना
दो तिहाई जग में फैला मानव प्यासा रहे
वातावरण शीतल रहता पत्थर बन जाए
निश्छल सागर कभी सरिता बहती जाए
भाप बन उडता जैसे जैसे गरम हो जाए
ठहर जाता दूर गगन में बादल बन जाए
बरस पड़ता बादलो से ये नवजीवन पाए
सर्व दूषण से रहित पाक साफ हो जाए
जीवन भी देखो हिमखंड सा लग जाए
सत्व में शीतल चट्टान सा खड़ा हो जाए
राजस मे ताप पाकर संसार में बह जाए
तामस में काम क्रोध की लपटे उठ जाए
न खोता चाहे दृष्टि से ओझल हो जाए
शीतल बयार चले मन विशुद्ध हो जाए
अस्तित्व यह खोता वाष्प बन उड़ जाए
मन की गहराइयों में जो अहम खो जाए
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