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तेरी औकात क्या है तू इन पैरों की जूती है
ठाकुरों की बस्ती है जरा अदब से चला कर
ज्यादा पुराना नही है सुदूर गांवों का सीन है
हिन्दू हो हिन्दू बने रहो ये तुम्हारी तकदीर है
कैसे अकड़ चलता है औकात को याद रख
थोड़ा झुककर अदा से कोर्निश बजाया कर
आधुनिक परिधान में एए किधर घुस आया
धोती गमछा अंगरखा सिर टोपी पगड़ी रहे
कैसे हिंदू बहन बेटियाँ सड़को पे निकलेगी
फिर कोई विजयवर्गीय खोल से निकलेगा
जिस दासता के गुलाम तुम सदियों से हुए
फिर पकड़कर तुमको उसी बाड़े में डालेगा
हर गली नुक्कड़ पर उनकी तो चौकी होगी
धर्म ठेकेदार तैनात है आजादी उनकी होगी
निकल आये बहुत दूर अब फिर लौट चले
इन हाथो के गुलाम तुम्हारी नियति बनी रहे
सम्प्रदायिकता नही ये मानसिक रुग्णता है
उत्सव मनाओ बेड़ियां तुम्हारे पगो में होगी
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