तुम्हारी नियति's image
Poetry1 min read

तुम्हारी नियति

suresh kumar guptasuresh kumar gupta April 18, 2023
Share0 Bookmarks 20 Reads0 Likes
तेरी औकात क्या है तू इन पैरों की जूती है
ठाकुरों की बस्ती है जरा अदब से चला कर

ज्यादा पुराना नही है सुदूर गांवों का सीन है
हिन्दू हो हिन्दू बने रहो ये तुम्हारी तकदीर है

कैसे अकड़ चलता है औकात को याद रख 
थोड़ा झुककर अदा से कोर्निश बजाया कर

आधुनिक परिधान में एए किधर घुस आया 
धोती  गमछा अंगरखा सिर टोपी पगड़ी रहे

कैसे हिंदू बहन बेटियाँ सड़को पे निकलेगी
फिर कोई विजयवर्गीय खोल से निकलेगा

जिस दासता के गुलाम तुम सदियों से हुए
फिर पकड़कर तुमको उसी बाड़े में डालेगा

हर गली नुक्कड़ पर उनकी तो चौकी होगी
धर्म ठेकेदार तैनात है आजादी उनकी होगी

निकल आये बहुत दूर अब फिर लौट चले
इन हाथो के गुलाम तुम्हारी नियति बनी रहे

सम्प्रदायिकता नही ये मानसिक रुग्णता है 
उत्सव मनाओ बेड़ियां तुम्हारे पगो में होगी

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts