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तुझे वंदे मातरम कहा

suresh kumar guptasuresh kumar gupta May 1, 2023
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गरीब की अम्मा बोली मैंने मेरे बच्चो की सेवा की
भरपेट खाना दिया किसी को भूखे सोने नही दिया
मैंने इंसाफ किया गलती से भी गलत नही किया
बच्चे सर उठाकर जीये कोई सर झुकने नही दिया

मैंने वो एकराम किया नही ऐसा कुछ होने दिया
नही कुछ ऐसा किया किसी को सर झुकाना पडा
बच्चे कहते रहै अम्मा तूने हमारा सर ऊंचा किया
दोष था हमारे नसीब का गरीब के घर जन्म लिया

गरीब की अम्मा भूल गयी गरीबी तो अभिशाप है
गरीबी में जो जिया है वो कहाँ सर उठा सका है
जिसका पैसा पानी हुआ बचत उपयोग न आया
तोडा दम बैंक की लाइन सिर कहां झुका पाया

मिलो पैदल चलते चलते लाचारी से हाथ फैलाये
सर झुकने कहाँ दिया पॉलिस के डंडे भी खाये
लाचारी कुछ ऐसी रही सवारी ही नदारद मिली
ऊपरवाला देख रहा हर पल माँ को याद किया 

कोविड ने जो कहर ढाया बच्चे तड़पकर रह गए
अम्मा को नही आना था अम्मा तब नदारद रही
न दवा अस्पताल मिला न इज्जत की मौत मिली
कहना न भूले तूने गलती से भी कहां गलत किया 

जो भुगता वो शायद उनके नसीब का ही दोष था
वरना कैसे अपने जिगर को बेरहमी से छोड़ जाती
दिल न पसीजा जिगर के टुकडे संभाल नही पाई
तूने तो इंसाफ किया शायद वो इस काबिल न था

इज्जत की नौकरी या काम मिल कहां रहा था
भीख की रोगी से पेट भरना शायद जायज़ होगा
बच्चे ने कितनी जिल्लत से टुकड़ा निगल लिया
गरीब की अम्मा बन तुने अपना हक अदा किया

जब जब भीड़ ने घेरा बच्चों का दिल कांप गया
बीच सड़क पर लिंच हुए बच्चे लहूलुहान पड़े रहे
दिल से आवाज़ आई मां तेरी मजबूरी रही होगी
वरना माता जमाने मे कभी कुमाता नही हो पाई

शुक्रगुजार है बेटे तेरे भूख प्यास गर्मी सर्दी में भी
खुले आसमान तले तेरा इंतज़ार कर पड़े रह गए
बहुत याद किया था हे माँ पर तू कहाँ नजर आई
बेदर्दी में कुछ दम तोड़ गए ये उनकी नियति थी

हे माँ न अफ़सोस कर जो मर गए वो तेरे बेटे थे
मुसीबत झेल जो बचे वे भी तो बहादुर बच्चे थे
जिसने फख्र से सदा तेरा भाल ऊंचा कर दिया
तेरी नादानी भूलकर भी तुझे वंदे मातरम कहा

स्वरचित

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