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परीक्षित को तक्षत का डर न रहा
जीवन का मोह तिरोहित हो गया
आत्मविश्वास बुलंदियां छूता गया
श्रीमद भागवत अमृत पान किया
सांसारिक वासनाएं नष्ट हो चुकी
मन दीपक की लौ सा स्थिर हुआ
सत्व राज तम के गुणातीत आत्मा
मन की चंचलता समाप्त हो गयी
योगधारणा से हृदय में दर्शन कर
भगवत् प्रेम का आनन्द भर उठा
भक्ति धारा में मृत्यु का भय नही
आत्मा का अमरत्व विदित हुआ
स्वागत है तक्षक राजन कह रहे
तुम निभाते जाओ कर्तव्य अपना
मैं श्रीकृष्ण अमृतपान कर चुका
अब मृत्यु का भय तिरोहित हुआ
भगवान विराट रूप में तल्लीन हो
बुद्धि और ज्ञान से मन वश किया
तक्षक कैसे छू पाता परीक्षित को
राजन भगवत रूप में विलीन हुए
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