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तकदीर खुद लिखने बैठे

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 15, 2023
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कौन है क्या दिखे मुश्किल है यह कहना
हर एक चेहरे ने एक चेहरा लगा रखा है
 
पहचान मुश्किल हुई मोबाइल का युग है
सीसीटीवी युग है हर चेहरे पर मुखोटा है

हरएक जो सीसीटीवी की जद में खड़ा है
शागिर्द है या चश्मदीद है राज यह राज है

हाथ मे जो है मोबाइल लिए आप खड़े है 
वह मोबाइल नही करतूतों का आईना है

हिसाब खुदा नही रखता अब गुनाहो का
आज सब कुछ रिकॉर्ड होता हथेलियो में

हमराज बना हुआ आपकी राजदारी का
आप जिसे अपना राजदार ही समझ बैठे 

अब बाजुओं का जोर बखत नही रखता
लड़ नही बैठना लड़ने की रीत बदल गई

कलम में कभी ताकत हुआ करती होगी 
हैकरों की फौज में आज ताकत रहती है

टूट रहे है जो महल ईंट पत्थरो से बनाते
आज सेंधमारी की रीत पुरानी होती गयी

अब इंतज़ार न करना तालो के टूटने का
सेंधमारी हजारो मीलों दूर से होने लगी

कहते है विकास की लिफ्ट से चढ़ते गए
शने शने आदिम युग में प्रवेश करते गए

आज कपड़े शरीरों पर नाममात्र बचे रहे 
आत्मा धर्मविहीन हुई कपड़े है फटे हए

इलेक्ट्रॉनिक्स के जमाने मे जो आ पहुंचे
बिना जेल बिना हथकड़ी ही कैद हो गए

मत दोष देना उसे जिसने तकदीर लिखी
हम जो अपनी तकदीर खुद लिखने बैठे

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