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स्वर सृष्टि का मूल है नाद ब्रह्म सृष्टि जान
स्वर ही ईश्वर साधना राग-विराग अनुभूत
भगवान शिव डमरू से स्वर उपजते जान
व्याकरण से उपजते संगीत छंद एवं ताल
ब्रह्मा सृष्टि रच रहे मगर रही सृष्टि मृतवत
सृष्टि में ध्वनि न स्वर है रच ब्रह्मा है उदास
ध्यान सरस्वती का कर तब करे आवाहन
वीणा पाणिनि प्रकट हुई लेके वीणा हाथ
जब तार झंकृत हुए सृष्टि हुई स्वर प्रधान
कंपन से मूक सृष्टि में हुआ ध्वनि संचार
हवा सागर पशुपक्षी वाणी बोल रहे जीव
नदीनाले की कलकल से ध्वनि है सजीव
कंठ के स्पर्श से स्वर व्यंजन वैखरी रूप
वैखरी से व्यवहार बोलचाल ज्ञान विज्ञान
मंत्रोंच्चारण से वायुमण्डल है कंपायमान
राग ध्वनि उत्पन्न करे तरंगों के परिणाम
स्वर उच्चारण मूल है जो संगीत आधार
संगीत से होवे आनन्द अनुभूति मनमस्त
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